एक बाग़ है
अनुभव का
उसमें खिले हैं कुछ फूल
ये फूल बरसों का निदाघ
झेल कर बड़े हुए
ये फूल समय के शेष नाम हैं ।
अनुभव का अपना
एक पूरा आकाश है
उस आकाश में उगा है एक चाँद
चाँद की एक जिद है अनवरत
वह रोज-ब-रोज मुझे समझाना चाहता है
मैं उस चाँद के डूब जाने की प्रतीक्षा करता हूँ ।
अनुभव एक कौतुक है
अपने होने का
उसमें होती है एक छद्म-सी हंसी
और सच में उस हंसी का एक लम्बा बियाबान है
मैं भटक गया हूँ उसमें।
न जाने क्यों ऐसा लगता है बार-बार
कि अनुभव अपने आप में एक तिरछापन है
जिसमें गुंथे हुए हैं हम सब
कहीं न कहीं
पर फिर भी उठती है टीस हृदय में
कि अनुभवहीन हैं हम।

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Poetry, Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021

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