Unknown Person
(Photo credit: Wikipedia)
हमारे आर्य-साहित्य का जो ‘प्रथम पुरुष’ है, अंग्रेजी का ‘थर्ड पर्सन’ (Third Person), मैं उसकी तलाश में निकला हूँ। वह परम-पुरुष भी ‘सः’ ही है, ‘अहं’ या ‘त्वं’ नहीं। वर्तमान में देख रहा हूँ, फ़िजा ‘मत’ के आदान-प्रदान की है। समय की गजब करवट है। ‘मत’ को यदि उलट देते हैं तो ‘तम’ हो जाता है। ‘तम’ अर्थात अंधकार। उस मतदान की उलटवासी में देख रहा हूँ, तम ही इधर-उधर पल्टी मार रहा है। देने लेने वाले दोनों ही तमीचर कहे जाँय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ‘तम’ का गूढ़ार्थ ‘अहंकार’ भी है। मत की ख्वाहिश वाले अहंकार के ही पुतले बने आकाश-पाताल एक कर रहे हैं। ‘अह’ और ‘त्वं’ में ‘सः’ और ‘ते’ खो गया है। ‘गांधी’ का कथन कि ‘सबसे नीचे से शुरु करो’ कपोलकल्पित हो गया है । शेखचिल्ली की सनक और ढपोरशंखी का घोषणापत्र हमें कहीं का नहीं रहने दे रहा है। भारतः- भा-रतः (प्रकाशालय) अब ‘भारं तनोति इति’ (भार का आगार) बन गया है, या यों कहें बना दिया गया है। हम गिरे नहीं, गिराये गये हैं-

“इस घर में आग लग गयी घर के चिराग से”।

सोचता हूँ, कहाँ है हमारा ‘प्रथम-पुरुष’ जिसे ’थर्ड पर्सन’ बना दिया गया है। उसे चूमे बिना, पीछे घूमे बिना उसके देश का कल्याण नहीं है । काश, अपने उस ‘प्रथम-पुरुष’ ‘भारत भाग्य विधाता’ को हम पहचान पाते-

“राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता
फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता।”


‘दिनकर’ ने संकेत कर दिया है, और धकिया कर हमें भेंज दिया है वहीं-

“आरती लिये तू किसे ढूँढ़ता है मूरख
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में।
देवता कही सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में॥”


मैं उसी ‘प्रथम-पुरुष’ का हिमायती हूँ।

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Last Update: September 17, 2022

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