हर शख्स अपने साथ मैं खुशहाल कर सकूँ
मेरी समझ नहीं कि ये कमाल कर सकूँ।

फैली हैं अब समाज में अनगिन बुराइयाँ
है लालसा कि बद को मैं बेहाल कर सकूँ।

फेकूँ निकाल हिय के अन्धकार द्वेष को
कटुता के जी का आज मैं जंजाल कर सकूँ।

है प्रार्थना कि नाथ वृहद शक्ति दो हमें
चेहरा बुराइयों का मैं विकराल कर सकूँ।

Categorized in:

Poetry, Ramyantar, Songs and Ghazals,

Last Update: June 19, 2021

Tagged in: