Image taken from page 39 of 'The Poetical Work...
Image taken from page 39 of ‘The Poetical Works of Percy Bysshe Shelley from the original editions. Edited, prefaced, and annotated by R. H. Shepherd’ (Photo credit: The British Library)
समझदारों ने बड़ी आत्मीयता से यह समझाया है कि पुरुष बली नहीं है, समय बली है। समय से हारा हुआ आदमी कितना बेचारा हो जाता है, यह आँखों के सामने देख कर थका-थका निढाल बैठा हूँ। अपने में ही मसोसता हूँ, कचोटता हूँ- क्या मैं स्वयं विषण्ण देश का ध्वस्त संस्कार हूँ। बर्बरता, उद्दंडता, आक्रोश, छल, प्रतिकार, उपेक्षा, अश्लीलता, क्लैव्य, प्रवंचना, परिग्रह, हिंसा आदि हमारी दिनचर्या में रच पच गये। प्राचीन की इतनी उपेक्षा पूर्व में शायद देखी गयी हो। नये के आग्रह का निर्लज्ज विस्तार, शताब्दी की अखंड विकासोन्मुख उपलब्धि के रूप में क्यों ग्राह्य हो गया है। मैं काल-पुरुष को नमस्कार करता हूँ। क्या समय एक घोड़ा है। वह निरन्तर गतिमान है। उसमें न अथ है, न अवसान है। समय का फ़ैसला देखकर रोते हुए भी हंसी आ जाती है-

“जिनको खुशबू की कुछ भी न पहचान थी
उनके घर फ़ूल की पालकी आ गयी। “

मुझे अंग्रेजी कवि ’शेली’ (P.B. Shelley) की पीर स्वयं की पीड़ा के रूप में मथ रही है। समयातीत कैसे रहूँ? –

“Alas ! I have nor hope nor health
Nor peace within nor calm around,
Nor that content, surpassing wealth,
The sage in meditation found,
And walk’d with inward glory crown’d.”


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Last Update: September 17, 2022