Small Flowers
 Flowers (Photo credit: soul-nectar)

कविता: प्रेम नारायण ’पंकिल’

जो बोया वही तो फसल काटनी है
दिया लिख अमा पूर्णिमा लिखते-लिखते।
पथिक पूर्व का था चला किन्तु पश्चिम
दिया राहु लिख चन्द्रमा लिखते-लिखते।

रहा रात का ही घटाटोप बाँधे
न बाहर निकलकर निहारा सवेरा
कुआँ खनने वाले को जाना है नीचे
हुआ ऊर्ध्वगामी महल का चितेरा,
हमें कर्म ही रच रहे हैं हमारे
दिया क्रोध ही लिख क्षमा लिखते-लिखते।

बना हंस पर धूर्त बगुले की करनी
अधोगति में सोया अधोगति में जागा
कलाबाजियाँ कर कँगूरे पर बैठा
गरुड़ हो सकेगा कभीं भी क्या कागा,
कमल रज के बदले लिया पोत कीचड़
दिया टाँक खर्चा जमा लिखते-लिखते।

यह बुढ़िया स्वयं खा रही है ढमनियाँ
सिखाती है औरों को सदगुण ही सुख है
लबालब भरेगा सलिल कैसे ’पंकिल’
जो औंधा किया अपनी गागर का मुख है,
चिकित्सक बना भी तो कैसा अनाड़ी
दिया टाँक मिर्गी दमा लिखते-लिखते।

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Poetry, Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021

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