आत्म रामायण के प्रतीकों की चर्चा करती हुई कल की प्रविष्टि का शेष आज लिख रहा हूँ ।

रावण की भुजाओं के अस्त्र-शस्त्र एवं काटने वाले बाण
अस्त्र-शस्त्रकाटने वाले बाण
कुबुद्धिक मान
पाप-बाण
विश्चासघात चक्र
हिंसा-खड्ग
परद्रोह नेजा(बघ नख)
अतिक्रोध त्रिशूल
चिंता छुरिका
तृष्णा बर्छी
कुबोल शंख
आशा कटारी
पाखंड गुर्ज
आडंबर परघ
विकल्प बिछुआ(कतुव)
कुसंग गदा
संकल्प कुल्हाड़ा
मोह-मंत्र
भ्रम-ढाल
विपत्ति बंदुक
बरबीली गुलेक
जन्म-मरण पाश
नाम का बाण
नाम का बाण
गम्भीरता
अंहिंसा
निर्वैर
भावना
अचिन्त
तृप्ति
मिष्ठ वचन
निराशा
सर्व संग त्याग
म्रुत्यु भय
निर्विकल्प
सज्जन संगति
आशा
मिथ्या-बोध
गुरुवचन श्रद्धा
उपासना
मैत्री
संत शरण

आत्म-रामायण के अन्य प्रतीक
शब्दप्रतीक
राम
अयोध्या
सरयू
दशरथ
कौशल्या
लक्ष्मण
भरत
शत्रुघ्न
विश्वामित्र
यज्ञ
मारीच
सुबाहु
ताड़का
मिथिला
प्रभुनाम
राम के हाथ
राम का बल
परशुराम
रथ
कैकेयी
राक्षसी सेना
वानर सेना
सुराज
वन
रावण
मोह
सुमित्रा
जनक
जनक की पत्नी
जानकी
शिव-धनुष
अहल्या
गौतम
गंगा
इंद्र
रामचरण
स्वयंवर में जाने वाले राजा
आसन
हृदय
लंका
ऋष्यमूक पर्वत
सुग्रीव
हनुमान
जामवंत
नल-नील
अंगद
बालि
तारा
संपाति
जटायु
श्रद्धा
रावण-वाटिका
वाटिका रक्षक
हनुमान की चपेट
मेघनाद
शूलपाश
पूँछ (हनुमान की )
अग्नि
वस्त्र
केवट (मल्लाह)
’वशिष्ठ गुरु
नगर
प्रजा
खड़ाऊँ
कबंध
सुतीक्षण
अगस्त्य
पंचवटी
सुपर्णखा
छुरी
छुरी की धार
खर-दूषण
स्वर्ण-मृग
खड्ग (रावण का)
पंख (जटायु के)
तेल
सागर
विभीषण
पहरेदार
कुम्भकर्ण
अंगद का पाँव
नारद
वैद्य
संजीवनी पर्वत
मंदोदरी
रावण-रथ
रावण-रथ अश्व
रावण रथ वल्गा
रावण रथ पहिये
रावण धनुष
राम धनुष
अग्नि (परीक्षा)
शुद्ध आत्मा
शरीर
श्वांस प्रक्रिया
संचित क्रियमाण कर्म
प्रारब्ध
यतीत्व
संयम
नियम
तप
एकाग्रता
विक्षेप, कपट
क्रोध
कलह
सत्संग
सत्यानन्द
वैभव
नम्रता
चित्त
मानस
द्वैत
आसुरी संपत्ति
दैवी संपत्ति
अविनाशी व्यवस्था
वैराग्य
अहंकार
प्रमोद
सुशील
वेद
उपनिषद
आत्मविद
कठोरता (हृदय की)
जड़वृत्ति
स्थिरिता
समाधि
हठवृत्ति
पावनता
मुखरता, अभिमान आदि
प्रीति
भूमि
अविद्या धाम
उदासीनता
विवेक
प्रेम
विचार
सम-दम
धैर्य
प्रमाद
बुध-सुख
निष्काम
उपकार
क्षुधा
क्लेश
आलस्य
निवृत्ति
काम
रस-राग
उत्साह
संताप
कुतर्क
सुंदर भाव
विज्ञान
कुतूहल
श्रवण मनन
आमोद
कुदाँव
धारणा
योग
ब्रह्मवाद
ईर्ष्या
समता
सुहृदता
लोभ
इच्छा
हिंसा
उद्यम
निंदा, चुगली
लोकलाज
शुद्ध मन
छल
मोह
दृढ़ता
भजनानन्द
साधु
धर्म
चातुरी
अज्ञान
प्रलाप कलाप
बेसमझी
पश्चाताप, व्याकुलता
कुबुद्धि
सिद्धि
ज्ञानाग्नि