न गयी तेरी गरीबी तुम्हें माँगने न आया
खूँटी पर उसके कपड़ा तुम्हें टाँगने न आया ।

दिन इतना चढ़ गया तूँ अभीं ले रहा जम्हाई
गाफिल है नींद में ही तुम्हें जागने न आया ।

एक अंधे श्वान सा तूँ रहा भूँकता हवा में
असली जगह पे गोली तुम्हें दागने न आया ।

खुद रूप रंग रस की जलती चिता में कूदा
उस आग से निकलकर तुम्हें भागने न आया ।

चिथड़े में ही ठिठुर कर सारी उमर गंवा दी
सुधि रेशमी रजाई तुम्हें तागने न आया ।

Last Update: June 19, 2021

Tagged in: