टिप्पणीकारी को लेकर काफी बातें करते रहने की जरूरत हमेशा महसूस होती है मुझे । मैं इस चिट्ठाजगत में टिप्पणीकारी के अर्थपूर्ण स्वरूप को लेकर विमर्श करते रहने का हिमायती हूँ । पर आज अपनी इस प्रविष्टि में मैं किसी विमर्श या विचार को प्रस्तुत नहीं कर रहा हूँ, अपितु टिप्पणी के अनुशासन के साथ-साथ उसकी अर्थमय प्रभुता को प्रदर्शित करने वाली एक टिप्पणी आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ । यह टिप्पणी मेरी एक प्रविष्टि ’अकेला होना सबके साथ होना है’ पर डॉ० अरविन्द मिश्र ने दी है । अरविन्द जी का टिप्पणी-स्नेह-सम्बल सदैव मुझे लिखने की प्रेरणा देता रहता है । मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं हो रहा है कि कई प्रविष्टियाँ तो मैंने अरविन्द जी की एकमात्र अर्थगम्भीर टिप्पणी के लिये ही लिखी हैं, और न यह स्वीकारने में संकोच हो रहा है कि जिस प्रविष्टि पर यह टिप्पणी आयी है, वह प्रविष्टि अरविन्द जी की टिप्पणी के सामने टके भर की नहीं है । इसका प्रमाण तो स्वय़ं वह टिप्पणी ही है, जो प्रस्तुत है –

“अब कुछ इस प्रस्तुति के भाव -दार्शनिक पक्ष पर भी ! मनुष्य तो मूलतः एकाकी ही है -एक निमित्त मात्र बस प्रकृति के कुछ चित्र विचित्र प्रयोजनों को पूरा करने को धरती पर ला पटका हुआ -उसकी शाश्वत अभिलाषाओं की मत पूँछिये -वह कभी खुद अपने को ही जानने को व्यग्र हो उठता है तो कभी कहीं जुड़ जाने की अद्मय लालसा के वशीभूत हो उठता है -दरअसल उसकी यह सारी अकुलाहट खुद अपने को और अपने प्रारब्ध को समझने बूझने की ही प्राणेर व्यथा है -जिसे कभी वह अकेले तो कभी दुकेले और कभी समूची समष्टि की युति से समझ लेना चाहता है -पर अभी तक तो अपने मकसद में सफल नहीं हो पाया है -और यह जद्दोजहद तब तक चलेगी जब तक खुद उसका अस्तित्व है -और एक दिन (क़यामत !) या तो उसे सारे उत्तर मिल जायेंगें ( प्रकृति इतनी उदार कहाँ ?) या फिर वह चिर अज्ञानी ही धरा से विदा ले लेगा ! इसलिए हे हिमांशु इन पचडों में न पड़ कर तूं जीवन को निरर्थक ही कुछ तो सार्थक कर मित्र -कुछ तो साध ले भाई -अकेले रह कर या सबसे जुड़ कर यह सब तो बस मन का बहलाना ही है ! महज रास्ता है मंजिल नहीं !
इसलिए ही तो कहा गया है -सबसे भले वे मूढ़ जिन्हें न व्यापहि जगति गति ! !”

सही कह रहा हूँ न !

Categorized in:

Blog & Blogger, Hindi Blogging,

Last Update: September 17, 2022

Tagged in: