“जीवन के रोयें रोयें को
मिलन के राग से कम्पित होने दो,
विरह के अतिशय ज्वार को
ठहरा दो कहीं अपने होठों पर,
दिव्य प्रेम की अक्षुण्णता को
समो लो अपने हृदय में, और
अपने इस उद्दाम यौवन की देहरी पर
प्रतीक्षा का पंछी उतरने दो;
फिर देखो-
मैं बिना बुलाये ही
तुम्हारे द्वार का अतिथि बन कर आऊँगा !”

अपने प्रेम-पत्र में
यही तो लिखा मैंने
विश्वास का दीप जला कर
दिये की वासंती रोशनी में ।

Categorized in:

Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021