प्रायः ऐसा होता है कि फेसबुक पर देखी पढ़ी गयी प्रविष्टियों पर कुछ कहने का मन हो तो उसके टिप्पणी स्थल की अपेक्षा ब्लॉग पर लिख देने की आदत बना ली है मैंने। यद्यपि ऐसा भी कम ही हो पाता है क्योंकि समय और सामर्थ्य की कमी से यहाँ भी आमद घट गयी है मेरी। फेसबुक पर अमरेन्द्र भाई ने ऑक्टॉवियो पाज़ (Octavio Paz) की एक कविता Two Bodies के प्रारंभिक परन्तु सशक्त हिस्से को शेयर किया तो सहज ही उसके हिन्दी रूपान्तर की जिज्ञासा ने घेरा। यद्यपि शुरुआती हिस्सों के अनुवाद फेसबुक पर तत्क्षण ही आए पर पूरी कविता का रूपांतर शेष रहा। अपनी टिप्पणी में अमरेन्द्र ने पूरी कविता उपलब्ध करायी तो इसका हिन्दी रूपांतर ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूँ। 

Two Bodies by Octavio Paz

Two bodies face to face
are at times two waves
and night is an ocean.

Two bodies face to face
are at times two stones
and night is a desert.

Two bodies face to face
are at times two roots
laced into night.

Two bodies face to face
are at times two knives
and night strikes sparks.

Two bodies face to face
are two stars falling
in an empty sky.

हिन्दी रूपांतर 

सम्मुख संस्थित दो देह
काल वह
ज्यों युग लहरों का खेला
हो जाती है विशाल सागर उस काल
यामिनी की बेला ।

आमने सामने कभीं युगल तन
लगते ज्यों युग शिला खण्ड
उस काल
निशा हो जाती है
जैसे कोई मरुथल प्रचंड।

आमने सामने दो शरीर
ज्यों
मूल बन्ध
हो रात कभीं।

सम्मुखभूता दो काय छुरी
निशि
ज्यों चमकी
दामिनी अभीं।

आमने सामने हुई देह
इस भाँति हो रही है दर्शित
विस्तीर्ण शून्य अम्बर से
ज्यों
नक्षत्र युगल हो गए पतित।