कविता-इंतज़ार

[एक.]
सलीका आ भी जाता
सिसक उठता
झाड़ कर धूल पन्नों की
पढ़ता कुछ शब्द
सुभाषित ढूंढ़ता
झंकारता उर-तार
राग सुवास गाता
रहस-वन
मन विचरता।
मैं स्वयं पर रीझ तो जाता
पर इंतज़ार उसका था।

[दो.]
साँवली-सी डायरी में
एक तारीख पर टँका हुआ
उजला पन्ना
और उसके अक्षरों को
हर दिन सहलाती सिहरती-सी अंगुलियां।
मैं इन्हें चूम तो लेता
पर इंतज़ार उसका था।