ब्लॉगवाणी का चिट्ठा संकलकों में एक प्रतिष्ठित स्थान है । ज्यादातर चिट्ठों के अनेकों पाठक इस संकलक के माध्यम से ही पहुँचते हैं । मेरे आँकड़ों में भी ज्यादातर पाठक इस संकलक से ही आते हैं । हर चिट्ठे की फीड तत्परता से संकलित कर दिखाने के लिये प्रतिबद्ध यह संकलक क्या खुद को सजाने, सँवारने में दिलचस्पी नहीं रखता ! सबको अपडेट रखने वाला खुद अपडेट क्यों नहीं होता ? अजीब बेनियाजी है खुद के प्रति ।

आपको दिखाता हूँ एक चित्र । देखिये (लाल तीर)-

कितनी प्रतिबद्धता दिखती है इन पंक्तियों में –

“ब्लॉगवाणी पर अभी कुछ कार्य, सुधार शेष है. कोशिश है कि इस सप्ताहांत और अगले सप्ताहांत तक हम यह खत्म कर पायें.”

पहली-पहली बार अपने चिट्ठे को यहाँ शामिल कराने आया था तो भी यह पंक्तियाँ यूँ ही दम साध कर खड़ी थीं । मैं इन्तजार करता रहा, बात इस सप्ताहांत और अगले सप्ताहांत की ही तो थी । अब तक तो चिट्ठाकारी में आठ महीने गुजर गये । कितने सप्ताहांत हुए, जोड़ लीजिये । कहीं आप रिझा तो नहीं रहे हमें – आशिक हूँ, पै माशूक फरेबी है मेरा काम …” की सोच कर ।

अच्छा नहीं लगता मुझे यह तकल्लुफ़ । सच्ची-सच्ची बात कहा करिये । हो सकता है, यह लिख कर चुप रह जाना आप की मजबूरी हो, पर हमारा भी तो खयाल करिये ।
ब्लॉगवाणी की यह पंक्तियाँ कहीं यह न जताये कि लिखे हुए का क्या ? वह तो यूँ ही लिख दिया गया है । अतः सुधार होना शेष है, इसे तो ज्ञापित करिये, पर समय के बंधन से मुक्त होकर ।

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Last Update: September 17, 2022

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