अप् सूक्त : [जल देवता ]
ऋचा –
शं नो देवीर् अभिष्टय आपो भवन्तु पीतये
शं योर् अभिस्रवन्तु नः ….-

ऋग्वेद

—————————————–

जल ज्योतिर्मय वह आँचल है
जहाँ खिला –
वह सृष्टि कमल है
जल ही जीवन का सम्बल है ।

’आपोमयं’ जगत यह सारा
यही प्राणमय अन्तर्धारा
पृथिवी का
सुस्वादु सुअमृत
औषधियों में नित्य निर्झरित
अग्नि सोम मय-
रस उज्ज्वल है ।

हरीतिमा से नित्य उर्मिला
हो वसुन्धरा सुजला सुफला
देवि, दृष्टि दो –
सुषम सुमंगल
दूर करो तुम अ-सुख अमंगल
परस तुम्हारा –
गंगाजल है ।

जल के बिना सभी कुछ सूना
मोती मानुष, चन्दन, चूना
देवितमे,
मा जलधाराओ
’गगन गुहा’ से रस बरसाओ
वह रस शिवतम
उर्जस्वल है

ऋतच्छन्द का बिम्ब विमल है
जल ही जीवन का सम्बल है ।

-छविनाथ मिश्र

——————————————————–

# नया ज्ञानोदय के बिन पानी सब सून विशेषांक से साभार ।


Categorized in:

Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021