Sarracenia    © Karen Hall प्रणय-पीयूष-घट हूँ मैं। आँख भर तड़ित-नर्तन देखता मेघ-गर्जन कान भर सुनता हुआ  पी प्रभूत प्रसून-परिमल  ओस-सीकर चूमता निज अधर से   जलधि लहरों में लहरता  स्नेह-संबल अक्षय वट हूँ मैं। देखता खिलखिल कुसुम तरु सुरभि हाथों…