सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 46-50)
सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद भ्रुवौ भुग्ने किं चिद्भुवनभयभंगव्यसनिनित्वदीये नेत्राभ्यां मधुकररुचिभ्यां धृतगुणम् ॥धनुर्मन्ये सव्येतरकरगृहीतं रतिपतेःप्रकोष्ठे मुष्टौ च स्थगयति निगूढान्तरमुमे ॥४६॥कुटिल भृकुटि युगल नयन कीओ भुवनभयहारिणी हे!तुल्यताधृत ज्यों शरासनसुसज्जित मधुकरमयी अभिराम प्रत्यंचा जहाँ हैवाम करतल में स्वयं धारण किएजिसको मदन हैभ्रू…