गहन मानवतावाद के पोषक और मानव मात्र में अटूट आस्था रखने वाले कन्नड़ के प्रख्यात साहित्यकार डॉ० मास्ति वेंकटेश अय्यंगार ने कन्नड़ कहानी को उल्लेखनीय प्रतिष्ठा दी। सृजनात्मकता की असीम संभावनाओं से लबरेज ’मास्ति’ (मास्ति का साहित्यिक नाम श्रीनिवास था, और इसी नाम से उन्होंने अपना अधिकांश साहित्य रचा, पर पूरे कर्नाटक में वे ’मास्ति’ के नाम से ही प्रसिद्ध थे, और स्वयं भी इसी नाम से संबोधन उन्हें प्रिय था ) के साहित्य ने कन्नड़ साहित्य को आस्था का साहित्य दिया और शाश्वत मूल्य को अभिव्यक्त करती लेखनी जनप्रिय होती गयी।

परमसत्ता की असीम अनुकंपा एवं बुद्धिमत्ता में उनकी असीम श्रद्धा है। इसी श्रद्धा के वातायन से मास्ति निरखते हैं हमारी सांस्कृतिक और नैतिक सर्वोच्चता, और फिर उनकी रचनाओं में अभिव्यक्त होने लगती है जीवन की सार्थकता और अर्थवत्ता। यद्यपि अनेकों बार संशय होता है मास्ति को पढ़ते हुए कि कहीं शाश्वतता और मूल्यवत्ता को गहराई से कवर करने वाला यह रचनाकार मानुषिक स्वभाव, उसकी नियति और मानुषिक दुर्बलता के प्रति सहानुभुति को अपनी आँखों से ओझल तो नहीं कर रहा!

मास्ति वेंकटेश अय्यंगार : Masti Venkatesh Iyengar

जन्म: 6 जून, 1891- मास्ति, जिला कोलार(कर्नाटक); निधन: 6 जून, 1986; मातृभाषा: तमिल; लेखन: कन्नड़; पुरस्कार/सम्मान: साहित्य अकादेमी पुरस्कार-1968, डी० लिट०-कर्नाटक वि०वि०, फेलो-साहित्य अकादेमी-1974, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार-1983; प्रमुख कृतियाँ: काव्यअरुण, मलर, मूकन मक्कलु, मानवी, संक्रान्ति; उपन्यास: चेन्नबसव  नायक, चिक्क वीरराजेन्द्र, सुबण्णा, शेषम्मा; नाटक: यशोधरा, काकन कोटे, पुरंदरदास; आत्मकथा: भाव (तीन भागों में); संपादन: जीवन (मासिक)। 

मास्ति वेंकटेश अय्यंगार के मानवतावाद का श्रोत है उनका यह विश्वास कि मानव उस अदृश्य शक्ति के हाथ का खिलौना है। यह अटूट आस्था भाव ही उनके साहित्य की अन्तर्धारा का निर्माण करती है, और यह रचनाकार अपने आत्मकथ्य में बोल पड़ता है – “हमारा साहित्य ईश्वर को स्वीकार करे या नकार दे, यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है। ईश्वर के हर्ष और विषाद से हमें कुछ लेना देना नहीं है। हमें तो मनुष्य के सुख-दुख की चिन्ता होनी चाहिये। मनुष्य में ऐसी आस्था दे जो उसे जीवन के सुख-दुख को समान भाव से स्वीकार करने की शक्ति प्रदान करती रहे।”

मानव के प्रति ऐसी आस्था रखने वाला यह सर्जक साहित्य के प्रति कितनी उत्कृष्ट और उदात्त भावना रखता है, इसे भी देखें – ” मानव के उत्थान के लिये साहित्य बड़ा सशक्त माध्यम है। वह मनुष्य को पशु से देवता बनाता है। मानवोन्नति के लिये ज्ञान, भक्ति और कर्म तीन मार्ग बताये गये हैं । उनके अलावा चौथा साहित्य मार्ग भी है। साहित्य का मार्ग सर्वोत्तम मार्ग है।”

मास्ति के रचनाकर्म की विशेषता है कि वह अपनी अभिव्यक्ति में अत्यन्त सरल और प्रभावी होता है। इस सरलता में मास्ति पिरोते हैं भाव-भावना के मनके और फिर निर्मित होती है अत्यन्त प्राणवंत, अर्थयुक्त रचना प्रक्रिया जिससे मास्ति पाठक को हर क्षण विभोर करते चलते हैं। पाठक तत्क्षण ही समझता है उनका मंतव्य और वस्तुतः यही रचनाकर्म का उद्देश्य ही है। लेखक और पाठक का अन्तराल निर्मित ही नहीं होता मास्ति की रचनायें पढ़ते हुए।  मास्ति के कृतित्व ने बहुत से महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय कृतियों और पात्रों का सृजन किया है जो सम्पूर्ण कन्नड़ साहित्य में आदर्श रूप में पूर्ण प्रतिष्ठित और समादृत हैं। इस महनीय़ व्यक्तित्व का पुण्य स्मरण!

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Last Update: November 13, 2022