आज की सुबह नए वर्ष के आने के ठीक पहले की सुबह है। मैं सोच रहा हूँ कि कल बहुत कुछ बदल जायेगा, कैलेंडर के पन्ने बदल जायेंगे, सबसे बढ़कर बदल जायेगी तारीख। मैं चाहता हूँ इस ठीक पहले की सुबह को अपनी आंखों में भर लूँ। क्या पता कल हो न हो?
मैं चादर में लिपटा अपने घर से बाहर निकला हूँ। सामने की गली में चपल चरण शिशु कुछ असुविधा भरी चाल सम्हाले चले जा रहे हैं। कोहरे से ढंके वातावरण में सामने दो बच्चों को देख रहा हूँ। इतनी सुबह एक बच्चा पंसारी की दुकान पर दाल की बोरी उझक उझक कर उठाते, सम करते कुछ बुदबुदा रहा है। दूसरा बच्चा चट्टी पर चुहल भरी भीड़ में खोया सा, चाय की प्याली और कुछ प्लेट खंगाल रहा है। मैं अपनी आँखें फेर लेता हूँ। कुछ दूर निकलता हूँ, देखता हूँ राजमिस्त्री के साथ देर शाम तक खट कर सोया बालू ढोने वाला बच्चा फ़िर बालू के टीले पर पहुँच गया है। मैं उदास हो जाता हूँ, तभी एक ठण्ड से कांपते अंगूठे पर ईंट के टुकड़े गिर जाने से रो रहे बच्चे को देख कर रुलाई छोट पड़ती है। याद आ जाते हैं राजेश जोशी-
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?
राजेश जोशी
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
ख़त्म हो गए हैं इस दुनिया में?
बाल श्रम – क्या होगा इस बचपन का!
मुझे रोना इसलिए आता है कि कुछ ही महीनों पहले बाल दिवस मनाया गया। भाँति भाँति के विमर्श के इस समय में बाल श्रम पर कितना कुछ हुआ। बाल-श्रम रोकने के चटक विज्ञापन प्रकाशित हुए। बच्चों की खूबी का इतना बयान हुआ कि आकाश भर गया। पर क्या वास्तविकता की प्रश्नावली के उत्तर में रिक्त स्थान की पूर्ति हुई? क्या प्रश्न-चिह्न के आगे व्याकरण का विराम चिन्ह नहीं लग गया है? क्या होगा इस बचपन का? आह निकलती है कि कोई राह निकल जाती। क्या दृष्टिगत हो रहे इसी बचपन की ही मांग ‘पन्त’ ने की है –
चित्रकार क्या करुणा करके मेरा भोला बालापन
सुमित्रानंदन पंत
मेरे यौवन के आँगन में चित्रित कर दोगे पावन?
मैं घुलने लगता हूँ। वसुदेवनंदन कृष्ण ने घोर अंगरिस को जीवन रस की दीक्षा देते हुए छान्दोग्य उपनिषद् में कहा कि अपनी भूख, अपनी प्यास, अपने अकेलेपन को इतनी गहराई से अनुभव करना कि वह सबकी भूख, सबकी प्यास, सबका अकेलापन बन जाय। यही जीवन यज्ञ की दीक्षा है। इस जीवन का गुरु भी जीवन है।
मेरी सर्द साँसें गर्म होने लगती हैं। बच्चे की किलकारी गूंजने देना चाहता हूँ, क्रंदन नहीं। आदमी की भीड़ का आदमी जगना चाहिए। “Men are cruel but man is kind.” बच्चे को श्रम नहीं, प्रेम की जरूरत है। ‘भूल से, बेसुरेपन से, अक्षमता से भी आनंद पाने की शक्ति प्रेम में ही होती है’। हमें याद आ जानी चाहियें, बच्चे की-
- Ten little fingers, getting into trouble when at rest,
- A combination of thousand questions, all asked at the same time,
- An innocent calf like depth that breaks your heart when you want to scold.
नए वर्ष के आगमन पर प्रार्थना करता हूँ सृष्टि के सिरमौर मानव से –
होने पाये न किसी फूल को एहसास खिजाँ
ऐसा माहौल गुलिस्ताँ में बनाए रखना।