Poetry

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ब्रश करती तुम्हारी अंगुलियाँ (कविता)

By Himanshu Pandey

कितना सुंदर हैब्रश करती तुम्हारी अंगुलियों का कांपनाकभी सीधे,कभी ऊपर-नीचेकभी धीमी कभी तेज गति सेजैसे थिरकता है मुसाफिरकिसी पहाड़ी राह…

तुम्हीं मिलो, रंग दूँ तुमको, मन जाए मेरा फागुन

By Himanshu Pandey

जग चाहे किसी महल में अपने वैभव पर इतराएया फिर कोई स्वयं सिद्ध बन अपनी अपनी गाएमौन खड़ी सुषमा निर्झर…

भारती तेरी जय हो (सरस्वती वंदना)

By Himanshu Pandey

तेरी सुरभि वहन कर लायी शीतल मलय बयार,भारती तेरी जय हो!तेरी स्मृति झंकृत कर जाती उर वीणा के तारभारती तेरी…

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