प्रेम के चिह्न नामक इस कहानी ने भीतर तक प्रभावित किया मुझे, बहुत कुछ बदल भी दिया इसने मेरे जीवन में- जीवन शैली ही नहीं विचार भी बदले, और भाव/भावना का तो रुपांतरण ही हो गया। प्रेम की अनोखी छाप लिए यह कहानी आपके सम्मुख है।
एक संध्या किसी नगर से एक अर्थी निकलती थी। बहुत लोग उस अर्थी के साथ थे। और कोई राजा नहीं, बस एक भिखारी मर गया था। जिसके पास कुछ भी नहीं था, उसकी विदा में इतने लोगों को देख सभी आश्चर्यचकित थे। एक बड़े भवन की नौकरानी ने अपनी मालकिन को जाकर कहा कि किसी भिखारी की मृत्यु हो गयी है और वह स्वर्ग गया है। मालकिन को मृतक के स्वर्ग जाने की इस अधिकारपूर्ण घोषणा पर हँसी आयी और उसने पूछा,
“क्या तुमने उसे स्वर्ग में प्रवेश पाते देखा है ?”
वह नौकरानी बोली,
“निश्चय ही मालकिन। यह अनुमान तो बिलकुल सहज है, क्योंकि जितने भी लोग उस अर्थी के साथ थे वे सभी फूट-फूटकर रो रहे थे। क्या यह तय नहीं है कि मृतक जिनके बीच था, उन सब पर ही अपने प्रेम के चिह्न छोड़ गया है?”
ओशो की एक पुस्तक से साभार।