हे सूर्य !
हे बहु-परिचित सूर्य !नहीं पा रहा हूँ तुम्हें नये सिरे से पहचान,पहचान नहीं पा रहा ….उत्तरी हवा चल रही है…
हे बहु-परिचित सूर्य !नहीं पा रहा हूँ तुम्हें नये सिरे से पहचान,पहचान नहीं पा रहा ….उत्तरी हवा चल रही है…
गहन मानवतावाद के पोषक और मानव मात्र में अटूट आस्था रखने वाले कन्नड़ के प्रख्यात साहित्यकार डॉ० मास्ति वेंकटेश अय्यंगार…
विश्व पर्यावरण दिवस पर अचानक ही एक श्लोक याद आ गया। श्लोक वृक्षों की जीवंत उपस्थिति और उनके शाश्वत मूल्य…
द्रौपदी के पाँच पुरुषों की पत्नी होने पर बहुत पहले से विचार-विमर्श होता रहा है। अनेक प्रकार के रीति-रिवाजों और…
दूसरों की गली का लगाते हो फेराकभी तुमने अपनी गली में न झाँकातितलियों के पीछे बने बहरवाँसूकभी होश आया नहीं…