नाग-पंचमी की शुभकामनाओं सहित कजरी की इस प्रस्तुति के साथ यह कजरी-श्रृंखला समाप्त कर रहा हूँ –
माधवी लतान में ना !
नियरे कनखी से बोलवलैं
सिर पै पीत-पट ओढ़वलैं,
रस के बतिया कहलैं सटके सखी कान में
माधवी लतान में ना !
बोलैं मधुर-मधुर बयना
मोहै तरुन अरुन नयना,
जइसे कमल खिलल पुरनिमा के चान में
माधवी लतान में ना !
गर में डार दिहलैं बाँहि
नाहिं निकसै मुँह से नाहिं,
कहली फिर मिलबै जमुना नहान में
माधवी लतान में ना !
जाने कइलैं कवन टोना
आलि नन्द जी कै छौना,
गजब जादू रहल बाँसुरी की तान में
माधवी लतान में ना !
दिहली सरवसै लुटाय
अबहीं जिभिया लाल बाय,
उनके रस-पंकिल अधचभले पान में
माधवी लतान में ना !
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लतान में – लताओं में ; नियरे – पास ; बयना – वचन; पुरनिमा – पूर्णिमा;
चान – चाँद; सरवसै – सर्वस्व; अधचभले – आधा चबाया हुआ ;
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