बिजली आ गयी । हफ्ते भर बाद । ’बूड़े थे पर ऊबरे’ । बिजली की अनुपस्थिति कुछ आत्मबोध करा देती है । रमणियों की तरह इसकी एक झलक पाने की उत्कंठा रहने लगी है मन में । आज ही, अभी कुछ ही देर पहले तो आयी है मेरे आँगन । साहचर्य-सुख विस्तार ले रहा है ।
ब्लॉग-जगत की टटकी बातचीत पर खयाल से नजर रखने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे फोन पर हफ्ते भर की झलक दिखायी और एक अनुत्तरित प्रश्न “क्या ब्लॉग साहित्य है ?” – इस पर अपना सार संक्षेप प्रस्तुत किया । कुछ अंश संक्षिप्ततः लिख रहा हूँ ।
बातें तो और भी बहुत कुछ थीं । मैं नहीं लिख रहा हूँ यहाँ । इतना लिखने का लोभ संवरण नहीं कर पाया । हाँ एक बात जरूर कह देना चाहता हूँ कि हफ्ते भर बाद लौटा हूँ – अभी इस दौरान की एकाध पोस्ट पढ़ी है – अनूप शुक्ल जी से क्षमा चाहता हूँ कि इस विषय पर बहुत कुछ अत्युत्तम लिखा जा चुका है और मैं उनका लिंक नहीं दे पा रहा । वैसे चिन्ता भी कैसी ? आशीष जी ने तो सामूहिक माफी माँग ही ली है । विनीत ।