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लंठ महाचर्चा : प्राणों के रस से सींचा पात्र बाउ (समापन किस्त)

By Himanshu Pandey

एक आलसी का चिट्ठा । गिरिजेश राव का चिट्ठा। स्वनाम कृतघ्न आलसी का चिट्ठा। यहाँ पहुँचते ही होंगे अवाक! टिप्पणी…

लंठ महाचर्चा : प्राणों के रस से सींचा पात्र बाउ

By Himanshu Pandey

एक आलसी का चिट्ठा। गिरिजेश भईया का चिट्ठा, स्वनाम कृतघ्न आलसी का चिट्ठा। यहाँ पहुँचते ही होंगे अवाक! टिप्पणी को…

क्या ब्लॉग साहित्य है? – मेरी हाजिरी

By Himanshu Pandey

बिजली आ गयी। हफ्ते भर बाद। ’बूड़े थे पर ऊबरे’। बिजली की अनुपस्थिति कुछ आत्मबोध करा देती है। रमणियों की…

टिप्पणी अदृश्य होकर करते हैं हम …

By Himanshu Pandey

आशीष जी की पोस्ट पढ़कर टिप्पणी नियंत्रण का हरबा-हथियार (मॉडरेशन) हमने भी लगाया ही था कि पहली टिप्पणी अज्ञात साहब की…

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