शिक्षक-दिवस पर प्रस्तुत कर रहा हूँ ’हेनरी एल० डेरोजिओ”(Henry L. Derozio) की कविता ’To The Pupils’ का भावानुवाद –
मैं निरख रहा हूँ
नव विकसनशील पुष्प-पंखुड़ियों-सा
सहज, सरल मंद विस्तार
तुम्हारी चेतना, तुम्हारे मस्तिष्क का,
और देख रहा हूँ शनैः शनैः
उस विचित्र जादुई सम्मोहन को टूटते हुए
जिसने बाँधे रखा था
तुम्हारी बौद्धिक उर्जा को, तुम्हारी सामर्थ्य को,
जादुई प्रभाव से मुक्त तुम्हारी चेतना
क्रमशः अभिव्यक्त कर रही है स्वयं को वैसे ही
जैसे कोई पक्षी-शिशु कोमल ग्रीष्म काल में
फैला रहा होता है अपने पंख
नापने के लिये उनकी सामर्थ्य ।
मैं साक्षी हूँ
तुम्हारे भीतर आकर लेते
ज्ञान के पहले प्रतिरूप का,
फिर क्रमशः घनीभूत होतीं
असंख्य धारणाओं-अवधारणाओं का –
जो निर्मित होती हैं परिस्थितियों की गति से,
स्फूर्ति लेती हैं समय की फुहारों से ।
फिर जो घटता है अनिवार्य
तुम्हारे अनुभव में
वह सत्य का स्वीकार होता है,
तुम औचक ही सत्य के पुजारी बन जाते हो ।
उस आनन्द का क्या कहूँ
जो भविष्य की उस कल्पना से उपजता है
जिसमें तुम यश के सहपथी बने
मुदित हो रहे होते हो और अनगिनत
पुष्प-हार सज रहे होते हैं तुम्हारी ग्रीवा में
तुम्हारे सम्मान में ।
और तब, बस तभी
मुझे लगता है, कि
मैंने व्यर्थ ही नहीं जिया है यह जीवन !
आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ।