बचपन!
तुम औत्सुक्य की अविराम यात्रा हो,
पहचानते हो, ढूढ़ते हो रंग-बिरंगापन
क्योंकि सब कुछ नया लगता है तुम्हें।
यौवन!
तुम प्रयोग की शरण-स्थली हो,
आजमाते हो, ढूँढ़ते हो नयापन
क्योंकि सबमें नया स्वाद मिलता है तुम्हें।
वृद्ध-पन!
तुम चाह से पगे परिपक्व आश्रय हो,
तुम भी उत्कंठित होते हो, ललचाते हो
उन्हीं रंगबिरंगी चीजों में अनुभव आजमाते हो।
Leave a Comment