जागो मेरे संकल्प मुझमें
कि भोग की कँटीली झाड़ियों में उलझे,
भरपेट खाकर भी प्रतिपल भूख से तड़पते
स्वर्ण-पिंजर युक्त इस जीवन को
मुक्त करूँ कारा-बंधों से,
दग्ध करूँ प्रेम की अग्नि-शिखा में ।
मेरा मनोरथ सम्हालो मेरे प्रिय !
कलमुँहीं रजनी के प्रभात हो तुम !
मन्दोत्साहित चेतना के मन्द हास हो तुम !
तुम दिक्काल से परे प्रेम-ज्ञान के ज्ञान-फल हो !
तुम सीमा रहित अतल-तल हो !
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