जीवन में ऐसे क्षण अपनी आवृत्ति करने में नहीं चूकते जब जीवन का केन्द्रापसारी बल केन्द्राभिगामी होने लगता है। मेरे बाबूजी की ज़िन्दगी की उसी बेला की उपज है शैलबाला शतक!
अनेकों झंझावातों में उलझी हुई जीवन की गति को जगदम्बा की ही शरण सूझी। अभाव-कुभाव-दुर्भाव में विक्षिप्त स्वभाव को शैलबाला के बिना कहाँ से सम्बल मिलता! इसलिए शैलबाला शतक में सहज वाणी में सहज प्रवाह को सरस्वती की सनकार मिली!
अपनी लोकभाषा में माँ का स्तवन-वन्दन-आत्मनिवेदन और समर्पण का जो ज्वार उमड़ा वह थमने का नाम नहीं ले रहा था। कहीं कोई बनावट नहीं, कोई सजावट नहीं, कोई दिखावट नहीं, बस बिछ गया तो बिछ गया अपनी माई के चरणों में।
जैसे हर पंक्ति आशीर्वाद होती गयी और माँ की वन्दना से निहाल होते गये बाबूजी। अपने से अपनी बात का यह सहज स्वाभाविक उच्छलन ही है शैलबाला शतक।
शैलबाला शतक: देवी का रौद्र रूप (कवित्त 1-4)
चमकि चमकि चहलि1.1 चहलि चोटी धै चपेटै चण्डी
बोटी बोटी काटै अरि चमूँ1.2 हाँफै हँकर हँकर
भरति कुलाँचा1.3 अरि ढाँचा ढाहि खाँचा1.4 करै
नाचा करै फिरकी सी पिवति लहू डकर डकर1.5
तरकति तड़ित सी हेलि1.6 खेलति कबड्डी अरि
हड्डी गुड्डी चूरि करति ताकत सुर टकर टकर1.7
ऐसो लरवइया1.8 हाय दइया नाहिं देख्यौ गयो
पंकिल को उबारो मोरि मैया बाँह पकर पकर ॥१॥
काठिन्य निवारण:
1.1.चहलि चहलि-रौंदकर; 1.2.चमूँ-सेना; 1.3.कुलाँचा-उछलना,कूदना; 1.4.खाँचा-रौंदना; 1.5.डकर डकर-गट गट; 1.6.हेलि-प्रवेश कर; 1.7.टकर-टकर-एकटक,अपलक; 1.8.लरवइया-योद्धा।
2.1.करेजा-कलेजा; 2.2.चाभि-चबाना; 2.3.दबेरति-डाँटना; 2.4.झंकोरति-झंकोरना; 2.5.मरोरति-मरोड़ती हुई,उमेठती हुई; 2.6.गट्टा-बाँह; 2.7.फेंकरति-चिल्लाती हुई; 2.8.बिलसति-सुशोभित होती है; 2.9.बल बट्टा-बल में कमी करके; 2.10.ठट्टा में-ठाट-बाट (सेना) में ; 2.11.दोहाई-जय जयकार, पुकार।
3.1.चोप-क्रोध; 3.2.बिहरावति-छिन्न-भिन्न करना; 3.3.आँतरी-अँतड़ी; 3.4.मेलति-पहन लेना; 3.5.दिगंतर -सभी दिशाओं में, चारों ओर; 3.6.लसत-अच्छा लगना; 3.7.लोल-चंचल; 3.8.कलाप-कार्य।
4.1.करवाली-तलवार-युक्त; 4.2.दौरी-दौड़ी; 4.3.बिथकत-विखंडित; 4.4.भट-वीर; 4.5.कँहरि-कँहरि-कराहते हुए; 4.6.भहरात-लड़खड़ाते हुए; 4.7.घिघियात-चिल्लाते हुए ; 4.8.बुक्का फारि-मुँह फाड़-फाड़ कर; 4.9.बुबुक-बुबुक–हिचकी लेकर,सिसकी लेकर; 4.10.चिरौरी-प्रार्थना।