ब्रश करती तुम्हारी अंगुलियाँ (कविता)
कितना सुंदर हैब्रश करती तुम्हारी अंगुलियों का कांपनाकभी सीधे,कभी ऊपर-नीचेकभी धीमी कभी तेज गति सेजैसे थिरकता है मुसाफिरकिसी पहाड़ी राह…
कितना सुंदर हैब्रश करती तुम्हारी अंगुलियों का कांपनाकभी सीधे,कभी ऊपर-नीचेकभी धीमी कभी तेज गति सेजैसे थिरकता है मुसाफिरकिसी पहाड़ी राह…