Thou Hast Made Me Endless, Such Is Thy Pleasure is one of the profound poems by Rabindranath Tagore from his celebrated collection “Gitanjali” (Song Offerings). The poem reflects the poet’s deep devotion and gratitude towards the divine, exploring themes of eternity, divine will, and the boundless nature of the human spirit.
Original Text of the Song
Thou hast made me endless, Such is thy pleasure.
This frail vessel thou emptiest again and again, and fillest
it ever with fresh life.
This little flute of a reed thou hast
carried over hills and dales, and hast breathed
through it melodies eternally new.
At the immortal touch of thy hands
my little heart loses its limits enjoy
and gives birth to utterance ineffable.
Thy infinite gifts come to me only on
these very small hands of mine.
Ages pass, and still thou pourest ,
and still there is room to fill.
‘इस तुच्छ प्राण को भी तुमने अक्षय कर डाला है प्रियतम‘ रवींद्रनाथ टैगोर के प्रसिद्ध काव्य संग्रह “गीतांजलि” की एक गहन भावयुक्त कविता है। यह कविता कवि की गहरी भक्ति और ईश्वर के प्रति आभार को दर्शाती है, और अनंतता, दिव्य इच्छा, और मानव आत्मा की असीम प्रकृति का अन्वेषण करती है।
Hindi Translation by Prem Narayan Pankil
हा हा अद्भुत अनंत तेरा आनंद निराला है प्रियतम
इस तुच्छ प्राण को भी तुमने अक्षय कर डाला है प्रियतम।
करते रहते हो पुनः पुनः रिक्त मेरी जीवन प्याली
फिर फिर नव-नव रस से इसको भर-भर देतो हो बनमाली।
गिरि-सरि मधुर बांसुरी बजता मुरली वाला है प्रियतम
इस तुच्छ प्राण को भी तुमने अक्षय कर डाला है प्रियतम।।
हे महा मधुर ! तेरे अमर्त्य कोमल करतल से संस्पर्शित
लघु ह्रदय हमारा तोड़ सभी सीमायें हो उठता हर्षित।
रह सकता हर्ष वेग से क्या अधरों पर ताला है प्रियतम
इस तुच्छ प्राण को भी तुमने अक्षय कर डाला है प्रियतम।।
बलि-बलि जाता हूँ प्राणनाथ ! तेरी मधुमय अठखेली पर
उपहार उमड़ आते अनंत मेरी लघु तुच्छ हथेली पर।
भरते युग से फिर भी अपूर्ण ‘पंकिल’ त्रिणशाला है प्रियतम
इस तुच्छ प्राण को भी तुमने अक्षय कर डाला है प्रियतम।।