Original Text
The rain has held back
for days and days,
my God, in my arid heart.
The horizon is fiercely naked-not the thin-nest cover of a soft cloud,
not the vaguest hint of a distant cool shower.
Send thy angry storm,
dark with death,
if it is thy wish,
and with lashes of lightning startle the sky from end to end.
But call back, my lord,
call back this pervading silent heat,
still and keen and cruel,
burning the heart with dire despair.
Let the cloud of grace bend low
from above like the tearful look of the mother
on the day of the father’s wrath.
Hindi Translation
दिन पर दिन बीतते गए हा! मेरे प्राण बहुत तरसे हैं
जाने कब से सूखे उर में हे प्रभु मेघ नहीं बरसे हैं।
क्रुद्ध अनावृत्त तप्त क्षितिज है दर्शित कहीं न रंच जलद है
दूर-दूर तक भी शीतल वर्षा के ध्वनित न होते पद हैं
स्पष्ट न इंगित वर्षागम का जलद नहीं निकले घर से हैं-
दिन पर दिन बीतते गए हा! मेरे प्राण बहुत तरसे हैं।
भेजो अपना क्रुद्ध प्रभंजन असित मृत्यु सा झंझावाती
यदि यह तेरी इच्छा ही है तो मारुत में जो उत्पाती
तड़ित ताड़ना से नभ कम्पित कोण चकित चपला कर से हैं-
दिन पर दिन बीतते गए हा! मेरे प्राण बहुत तरसे हैं।
किन्तु बुला लो नाथ बुला लो स्थायी मौन ताप प्राणेश्वर
स्थिर निर्मम नैराश्य अनल उर गृह है दहन हेतु नित तत्पर
भस्मीभूत कर रहे मेरा हृदय निठुर आतप खर-से हैं-
दिन पर दिन बीतते गए हा! मेरे प्राण बहुत तरसे हैं।
पंकिल कृपा जलद झुकने दो नीचे झुकी घटा ललिता हो
किसी लाडले बालक पर ज्यों बहुत क्रुद्ध हो गया पिता हो
तब सुत को निहार जननी के जल से नयन गए भर-से हैं-
दिन पर दिन बीतते गए हा! मेरे प्राण बहुत तरसे हैं।