मैं सपनों का फेरीवाला, मुझसे सपन खरीदोगे क्या?
यह सपने जो चला बेचने, सब तेरे ही दिए हुए हैं,
इन सपनों के चित्र तुम्हारी यादों से ही रंगे हुए हैं;
मैं प्रिय-सुख ही चुनने वाला,मुझसे चयन खरीदोगे क्या?
कहाँ कहाँ के चक्कर करता द्वार तुम्हारे आ पाया हूँ
जहाँ जहाँ भी गया खोजते, वहीं गया मैं भरमाया हूँ;
मैं स्मृति में रोने वाला, मुझसे रुदन खरीदोगे क्या?
लो तुम्हें समर्पित करता हूँ यह स्वप्न बिचारे, बुरे-भले
तुमको ही इन्हें सजाना है ले लो इनको बिन दाम भले;
मैं जिनसे स्वप्न देखता आया, मुझसे वह नयन खरीदोगे क्या?
यह कविता प्रेमी द्वारा प्रेमिका को लिखे गए प्रेमपत्रों का काव्यानुवाद है। ऐसी अनेकों प्रेमिल प्रविष्टियाँ ब्लॉग पर प्रकाशित हैं।
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