Life of my life, I shall ever try to keep my body pure is a profound poem from Rabindranath Tagore’s celebrated collection “Gitanjali”. This poem reflects Tagore’s deep spiritual philosophy and his quest for purity and truth.
Original Text of the Poem
Life of my life, I shall ever try to keep my body pure, knowing that
thy living touch is upon all my limbs.
I shall ever try to keep all untruths
out from my thoughts, knowing that
thou art that truth which has
kindled the light of reason in my mind.
I shall ever try to drive all evils
away from my heart and keep
my love in flower, knowing that
thou hast thy seat in the inmost
shrine of my heart.
And it shall be my endeavours to
reveal thee in my actions, knowing it
is thy power gives me strength to act.
तन निर्मलता का यत्न सदा सर्वदा करूँगा जीवन धन गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित अन्यतम कृति गीतांजलि में संकलित एक विशिष्ट कविता है। यह कविता गुरुदेव के गहन आध्यात्मिक दर्शन एवं उनकी आत्मा की पवित्रता एवं सत्य के अन्वेषण की प्रतिनिधि कविताओं में से एक है।
Hindi Translation by Prem Narayan Pankil
तन निर्मलता का यत्न सदा सर्वदा करूँगा जीवन धन
जानता हमारे अंगो पर प्रियतम तेरा जीवित स्पंदन।
निज चिन्तन से कर डालूंगा सारे असत्य का उन्मूलन
वह सत्य तुम्हीं तो हो जिससे ज्योतित मेरा मानस चिंतन
ये पाणि अपावन कर सकते कैसे पावन पद प्रच्छालन
जानता हमारे अंगों पर प्रियतम तेरा जीवित स्पंदन।
मैं धूलि बीच निज अंतर के सारे दुर्भाव मिला दूँगा
अपने उर में प्राणेश प्रीति का विमल प्रसून खिला दूँगा
जानता हमारा हृदय तुम्हारा है प्राणेश्वर सिंहासन
जानता हमारे अंगो पर प्रियतम तेरा जीवित स्पंदन।
बस होगा यही हमारा श्रम जो भी प्रभु कर्म हमारे हों
सब तेरे हित ही हों सबमें हे श्रीमन आप पधारे हों
जानता शक्ति ही है तेरी ‘पंकिल’ प्राणों का अवलम्बन
जानता हमारे अंगो पर प्रियतम तेरा जीवित स्पंदन।