Woman (Source: in.com) |
देखा मैंने,
चल रही थी ‘बस’।
विचार उद्विग्न हो आये
विस्तार के लिये संघर्ष कर रहे
संकीर्ण जल की भाँति।
आगे की दो सीटें सुरक्षित-
प्रतिनिधित्व का दिलाने को विश्वास
और दशा उस प्रतिनिधि की-
अवगुंठित, संकुचित और अनिवर्चनीय।
बस का चालक
स्टीयरिंग छोड़
हियरिंग पर ध्यान देता हुआ,
फागुन का महीना –
जिसमें भौजी की खतरे में
पड़ी अस्मिता।
मूक बैठा मैं,
देखता रहा उसे,
वह- बेसहारा, सशंकित, झुकाये सिर,
नाखून कुटकते दाँत और धड़कता हृदय
सुन रही थी कथा
अस्मिता की नग्नता की
अवगुंठित, संकुचित और अनिवर्चनीय।
बस में बैठी एक युवती
कुटकती दाँत
सुन रही थी गीत फागुन-
खो रही थी-
अवगुंठित, संकुचित और अनिवर्चनीय।
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