आपको दिखाता हूँ एक चित्र । देखिये (लाल तीर)-
कितनी प्रतिबद्धता दिखती है इन पंक्तियों में –
“ब्लॉगवाणी पर अभी कुछ कार्य, सुधार शेष है. कोशिश है कि इस सप्ताहांत और अगले सप्ताहांत तक हम यह खत्म कर पायें.”
पहली-पहली बार अपने चिट्ठे को यहाँ शामिल कराने आया था तो भी यह पंक्तियाँ यूँ ही दम साध कर खड़ी थीं । मैं इन्तजार करता रहा, बात इस सप्ताहांत और अगले सप्ताहांत की ही तो थी । अब तक तो चिट्ठाकारी में आठ महीने गुजर गये । कितने सप्ताहांत हुए, जोड़ लीजिये । कहीं आप रिझा तो नहीं रहे हमें – “आशिक हूँ, पै माशूक फरेबी है मेरा काम …” की सोच कर ।
अच्छा नहीं लगता मुझे यह तकल्लुफ़ । सच्ची-सच्ची बात कहा करिये । हो सकता है, यह लिख कर चुप रह जाना आप की मजबूरी हो, पर हमारा भी तो खयाल करिये ।
ब्लॉगवाणी की यह पंक्तियाँ कहीं यह न जताये कि लिखे हुए का क्या ? वह तो यूँ ही लिख दिया गया है । अतः सुधार होना शेष है, इसे तो ज्ञापित करिये, पर समय के बंधन से मुक्त होकर ।