वर्ष अतीत होते रहे
पर धीरज न चुका
और न ही बुझा
तुम्हारा स्नेह युक्त मंगल प्रदीप,
महसूस करता हूँ-
तुम समय का सीना चीर कर
यौवन के रंगीले चित्र निर्मित करोगे,
एक कहानी लिखोगे, जिसमें होगा
स्नेह-स्वप्न-जीवन का इतिवृत्त,
और प्रतीक्षा में डबडबायी मेरी आँखें
पोंछ दोगे अपने मधु अधरों से ।
सही कहा तुमने
अदृश्य होते हैं हाँथ अनुग्रह के ।
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