हिन्दी साहित्य के उज्जवल नक्षत्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के बहुआयामी रचना-कर्म से चुनकर उनकी एक विशिष्ट और रोचक रचना क़ानून ताज़ीरात शौहर (पति दंड विधान) प्रस्तुत है। शब्दावली वही कानूनी उर्दू-फारसी। कठिन शब्दों के अर्थ साथ ही कोष्ठक में लिख दिये गए हैं। इस रचना को यहाँ प्रस्तुत करने का उद्देश्य भारतेन्दु का पुण्य-स्मरण तो है ही इस रचना का दस्तावेजीकरण भी है इण्टरनेट पर। पिछली प्रविष्टि के बाद दूसरी प्रविष्टि।
क़ानून ताज़ीरात शौहर
चौथा बाब (प्रकरण)
मुस्तसनियात (मुक्तगण)
दफा –
- (8) हर बशर (मनुष्य) जो खुदा के यहाँ से जामय (वस्त्र) औरत पहिना से उतारा गया है वह इस कानून से मुस्तसना है।
- (9) कोई जुर्म मुन्दर्जे कानून हाजा अगर बहुक्म औरत किया जाय तो इस कानून से मुस्तसना है।
- (10) कोई शख्स जो कि दरहकीकत फकीरी अख्तियार करे और दुनिया छोड़ दे वह बाद उस लमहा के जिसमें कि दुनिया छोड़ी है, इस कानून से मुस्तसना है।
- (11) कोई शख्स जो अपने जोरू को तिलाक दे, वह बाद उस लमहा के जब कि उसने अपना औरत को तिलाक दिया है, उस लहजा (समय) के पेश्तर तक जबकि वह दूसरी औरत से सरोकार कायम करे, इस कानून से मुस्तसना है।
पाँचवा बाब
इमदाद (सहायता) जुर्म
दफा (12) कोई शौहर को कि दूसरे शौहर को किसी औरत के बरखिलाफ बरगलायेगा तो यह समझा जायेगा कि उसने जुर्म करने में इमदाद की।
दफा (13) जिस वक्त कोई शौहर किसी दूसरे शौहर के जुर्म करने के वक्त मौजूद रहे और उसको उस जुर्म से न बाज रखे तो वह भी जुर्म की इमदाद करने वाला समझा जायेगा।
मुस्तसनियात (मुक्त-गण)
अलिफ – कोई औरत व मर्द जिन की शादी नहीं हुई है, इमदाद करने के जुर्म से मुस्तसना हैं।
बे – कोई शख्स जो बजोर बदमाशी या दौलत या किसी और सबब से जुर्म करदा शौहर की औरत के अख्तियार के बाहर है वह इस कानून से मुस्तसना है।
जीम – मगर बगैर शादी किये हुए भी वह लोग जो किसी औरत के तहत हुकूमत में हैं मुस्तसना न समझे जायेंगे।
तमसीलात (उदाहरण)
अलिफ – जैद का बकर नाम का एक भतीजा है जिस की शादी नहीं हुई है , जैद बकर के बहकाने से किसी मेला में गया और वहाँ रात को देर तक रहा पस (इसलिये) जैद मुजरिम हुआ, मगर बकर जो कि दूसरे घर में रहता है और औरत की हुकूमत से बाहर है इमदाद जुर्म की तुहमत उस पर नहीं हो सकती।
बे – खालिद एक नव्बाब है जिस के सबब से अमरू की गुजर औकात होती है, खालिद ने किसी शब मुहफिल में अमरू को अपने साथ रहने पर मजबूर किया मगर चूँकि वह दौलतमंद है इस वास्ते इमदाद जुर्म के इत्तिहाम (दोष) से मुस्तसना है।
जीम – जैद बकर का छोटा भाई है और अपने भावज की पकाई हुई रोटी खाता है। अगर वह जैद व बकर दोनों किसी शब को देर तक बाहर रहे तो जैद इमदाद जुर्म करने से सजायाब (दंडित ) हो सकता है।
दफा (14) इमदाद जुर्म करने वाले मुजरिमों की सजा उन की अदालत में होगी अगर वे असल मुजरिम की अदालत के हद अख्तियार (अधिकार की सीमा) के बाहर हैं।
तमसील (उदाहरण)
अलिफ – जैद असल मुजरिम है और बकर उसका मददगार है मगर दोनों की शादी हो चुकी है तो जैद की सजा उसकी जोरू करेगी और बकर की सजा जैद की जोरू के बहकाने से बकर की जोरू करेगी।
दफा (15) जुर्म के इमदाद करने वालों की सजा ब नजर तम्बीह (शासन की दृष्टि में) सिर्फ सर्सरी तौर से काफी होगी।
छठा बाब
जुर्म खिलाफ अदब अदालत
दफा –
- (16) लफ्ज अदालत से मुराद यहाँ सिर्फ शादी की हुई जोरू समझना चाहिए।
- (17) जो शौहर अपनी जोरू से लड़ना चाहे या लड़े या गैर शख्स जो उससे लड़ता हो उसकी इमदाद करें तो उस को किसी किस्म की कैद की सजा दी जायेगी लेकिन अगर अदालत की राय में यह जुर्म संगीन है तो हब्सदवाम बअबूर दरयाशोर (समुद्र पार कर सदा की सजा) की सज़ा देने का भी अदालत को अख्र्तियार है ।
- (18) जो शख्स अपने किसी बुजुर्ग या रिश्तेदार या दोस्त या लड़कों को अपने तरफ करके जोरू पर हावी होने का इरादा करे उसकी कैद की सजा या अलग सोने की सजा या सिर्फ गाली वगैरह दी जायेगी।
- (19) जो शख्स सिवा अपनी औरत के और किसी औरत पर इश्क जाहिर करेगा, तो वह अदालत का दुश्मन समझा जायेगा ।
खुलासा
अपनी जोरू के सिवा किसी औरत पर मेहरबानी की नजर करना ही जुर्म है, चाहे व किसी सबब से क्यों न हो ।
तमसीलात
सुग़रा जैद की जोरू है और कुबरा जैद की परोसिन है मगर कुबरा गरीब है। इस वास्ते जैद कभी-कभी कुबरा की कुछ मदद करता है पस जैद मुजरिम जुर्म मुन्दरज दफा हाजा (पूर्वोक्त) का हुआ।
अलिफ – अदालत को अख्तियार हासिल है कि बगैर कसूर किये हुए भी शौहर को इस जुर्म का मुजरिम करार दे, मुजरिम का यह सबूत देना कि वह मुर्तकिब (करने वाला) इस जुर्म का नहीं हुआ काबिल समाअत न होगा।
बे – अदालत के खौफ से झूठ-मूठ भी एक मर्तबा जुर्म का इकरार कर लेना किसी शौहर को मुजरिम बनाने के वास्ते काफी होगा।
जीम – बगैर जुर्म के इस कसूर में मुजरिम बनाने वाली अदालत यानी औरत सिनरसिदा या बदसूरत होनी चाहिये या जिसका शौहर सिनरसीदा या मकरूहसूरत (घृणित रूप वाला) हो उस औरत को भी इस किस्म का जुर्म कायम करने का अख्तियार हासिल है।
दाल – अगर नौजवान या खूबसूरत औरत अख्तियारात मुन्दर्जे बाला हासिल करना चाहे तो उस को अपनी बदमिजाजी (कर्कशापन) कबूल करनी पडे़गी।
दफा (20) इस कानून में जितनी किस्म की सजायें लिखी हैं वह सब या उन में से चंद दफा (19) के मुजरिम को दी जा सकती है।
सातवाँ बाब
जुर्म खिलाफ फौज सर्कारी
दफा –
- (21) घर के लड़के बर्री (स्थल की) फौज और मजदूरनियाँ बहरी (समुद्री) फौज समझी जायेंगी।
- (22) जो शख्स अपने किसी लड़की या अपने किसी लड़के को उन के माँ के बरखिलाफ बोलने या मजदूरनियों को बगैर हुक्म बीबी के काम करने को कहेगा तो वह फौज के बरखिलाफ बलवा करने का मुजरिम करार दिया जायेगा।
- (23) जो मुजरिम जुम-मुन्दर्जे दफा (22) का होगा उस को गाली बकने या झिड़की देने या रोने की सजा दी जायेगी।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना क़ानून ताज़ीरात शौहर का तीसरा और अंतिम भाग अगली प्रविष्टि में प्रकाशित है।