अपने समय की विरलतम अभिव्यक्ति, सशक्त वाणी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्मदिवस है आज । भारतेन्दु आधुनिक हिन्दी के जन्मदाता और बहुआयामी, क्रान्तिकारी रचनाधर्मिता के विराट प्रतीक-पुरुष हैं । कुछ भी नहीं छूटा है इस सर्वतोमुखी प्रतिभा से । कर्तृत्व की समग्रता का दिग्दर्शन करना हो तो भारतेन्दु से बेहतर नाम और कौन ?
आज भारतेन्दु के जन्मदिवस पर उनके बहुआयामी रचना-कर्म से चुनकर एक विशिष्ट और रोचक प्रस्तुति । शब्दावली वही कानूनी उर्दू-फारसी । रचना का नाम – ’कानून ताज़ीरात शौहर’ । शब्दावली की दुश्वारी के लिये पहले तो हिन्दी में अनुवाद करना चाहा था – पर मूल का आनन्द ज्यों का त्यों अक्षुण्ण रखने की जिद ने रोक दिया । कठिन शब्दों के अर्थ नीचे लिखूँगा । रचना चूँकि लम्बी है, इसलिये दो-तीन प्रविष्टियों में ही प्रस्तुत करना बेहतर होगा । यहाँ प्रस्तुत करने का उद्देश्य भारतेन्दु का पुण्य-स्मरण तो है ही इस रचना का दस्तावेजीकरण भी है इण्टरनेट पर । ( साभार : भारतेन्दु समग्र-हिन्दी प्रचारक ग्रंथावली परियोजना, वाराणसी )
चूँकि मुनासिब मालूम हुआ कि एक कानून ऐसा इजरा किया जावै जिस से बाद शादी के जौजा अपने शौहरों पर बखूबी हकूमत कर सकें और इस सबब से उन दोनों में निफा़क़ न पैदा हो लेहाजा़ क़ानून हस्बज़ैल मुरौविज किया गया ।
दफा (1) इस कानून का नाम ताज़ीरात शौहर होगा, हिन्दुस्तान में कोई औरत या मर्द जो शादी कर लेगा वह कानूनन इसका पाबन्द समझा जायेगा ।
जो अह्ल यूरोप हिंदुस्तान में आकर शादी करेंगे वह इस कानून से मुस्तसना समझे जायेंगे ।
दफा (2) किसी औरत के तहत हुकूमत में कोई शै जो कि जाहिरा मनकूलः मगर बगैर हुक्म औरत के गैरमनकूलः है उस से मुराद शौहर है ।
अलिफ – सन्दूक वगैरह को शौहर नहीं कह सकते क्योंकि वह जयदाद मनकूलः से हैं मगर अपने को खुद बखुद नहीं चला सकते हैं ।
बे – गाय, बैल, कुत्ता, गदहा वगैरह अगरचे खुद बखुद चल सकते हैं मगर वह अपने औरतों की हुकूमत से जायदाद गैरमनकूलः नहीं हो जाते, इस वास्ते लफ्ज शौहर उन पर असर पज़ीर न होगा ।
जीम– चूँकि ऐसी जायदाद जो कि जाहिरा मनकूलः हो मगर औरत के हुक्म से फौरन गैर मनकूलः हो जाय, सिर्फ शादीकरदः मर्द हैं, लेहाज़ा लफ्ज शौहर से मुराद उन्हीं लोगों से होगी ।
दफा (3) शौहर की जायदार है, इस वास्ते उसपर उसको हर किस्म का अख्तियार हासिल है ।
अपनी जायदाद को लोग जिस तरह बना बिगाड़ सकते हैं, उसी तरह जोरुओं को अपने शौहर पर ज़द व कोब करना व खाना न देना, वगैरह का अख्तियार हासिल होगा ।
दफा (4) इस कानून में मुजरिमों को हस्बजैल सज़ा दी जायेगी ।
अलिफ – कैद यानी शौहर को मकान की चारदीवारी से बाहर न जाने देना, यह कैद दोनों तरह की होगी, वा मेहनत व बिला मेहनत – लफ़्ज बिना मेहनत से मुराद है कि सिर्फ बाहर न जाने पाये ।
बे – अलग बिस्तर या दूसरे मकान में सोलाना ।
जीम – हमेशा के वास्ते गुलामी करानी ।
दाल – जुर्माना, यानी किसी किस्म का नक्द या जेवर लेकर कसूर मुआफ़ करना ।
दफा (5) इस कानून में भी सजाय मौत सब से बड़ी सज़ा है मगर आदमी के जान को उनकी बदन से अलग कर देना यहाँ सज़ाय मौत नहीं, यहाँ लफ़्ज सज़ाय मौत से यह मुराद है कि औरत रूठ कर अपने बाप या भाई के घर चली जाय और फिर न आये ।
दफा (6) सजाय हबसदवाम बअबूर दरियाशोर से इस कानून में यह मुराद है कि औरत चंद अरसः के वास्ते शौहर को अपने घर में न आने दे या चंद अरसः के वास्ते खफा होकर अपने बाप के घर में चली जाये ।
दफा (7) मुकद्दमात सर्सरी के वास्ते हस्बजैल छोटी-छोटी सज़ायें मुकर्रर हैं —
अलिफ – न बोलना ।
बे – भौं चढ़ाना ।
जीम- रोना ।
दाल – बकना ।
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रंगीन कठिन शब्दों के अर्थ यहाँ लिखे जा रहे हैं –