चारुहासिनी (मेरी भतीजी) की जिद है, इसलिये ये स्वागत-गीत यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ । उसके स्कूल में इस स्वतंत्रता दिवस पर गाने के लिये रचनायें दी थीं – उनमें यह भी था । उसकी जिद है कि “अपना तो सब यहाँ लिख देते हैं, मेरा भी यह गीत यहाँ लिख दीजिये ।” जिद पूरी कर रहा हूँ – इसी बहाने यह टंकित भी हो जायेगा –
अतिथि मंगल के मूल, अति प्रिय तुम हमसे अनन्य हो गये
आज स्वागत के फूल, झूल तेरी ग्रीवा में धन्य हो गये ।
आये तुम अति सुख का सागर लहराया
मन खग को मिली तेरी प्रेम तरु की छाया,
मेरे कंटक के शूल, लगता है अब मरणासन्न हो गये ।
देख तुम्हें जन-जन का आज हृदय हरषा
तेरी करुणा का सजल सावन-घन बरसा,
तेरी प्रीति का दुकूल,लहरा कि कण-कण आच्छन्न हो गये।
रिक्त इस अकिंचन के पूजा की थाली
आप को निहार बस बजाते करताली,
पूर्ण परिसर के कूल, रहे जो विपन्न अब प्रसन्न हो गये ।
अपनी अभिलाषायें अब हुई वसन्ती
आशीषें आपकीं मिली हैं रसवन्ती,
कष्ट कंटक बबूल, सुरभित मधु रस से सम्पन्न हो गये ।