’महाजनो येन गतः..’ वाला मार्ग
भरी भीड़ वाला मार्ग है
नहीं रुचता मुझे,
जानता हूँ
यह रीति-लीक-पिटवइयों की निगाह में
निषिद्ध है, अशुद्ध है ।
चिन्ता क्या !
मेरी इस रुचि में (या अरुचि में)
बाह्य और आभ्यन्तर,
प्रेरणा और व्यापार की साधु-मैत्री है ।
मैं हठी हूँ,
जानता हूँ क्षिप्र भी हूँ
तो क्या !
सोचता ही हूँ कहाँ मैं
निन्दा और स्वीकृति, विधि और निषेध को
साहसी हूँ ,
औ’ विजेता हूँ
लोक-लज्जा से उफनती भीरुता का ।
मैं स्वलक्षण-शील हूँ ।
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