Clouds heap upon clouds and it
darkens. Ah, love, why dost thou let
me wait outside at the door all alone ?
In the busy moments of the noon-tide
work I am with the crowd, but on
this dark lonely day it is only for
thee that I hope.
If thou showest me not the face,
if thou leavest me wholy aside,
I know not how I am to pass
these long rainy hours.
I keep gazing on the far-away gloom
of the sky, and my heart wanders
wailing with the restless wind.
(R.N.Tagore : Geetanjali )
गुम्फित हो बादल पर बादल प्राण रच रहे तम का खेला
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
श्रम मंडित दोपहरी का अति व्यस्त समय हमने काटा है
जन संकुल परिसर में अपने को हमने प्रियतम बाँटा है ,
किन्तु मिलन की आस तुम्ही से है जब सघन तिमिरमय बेला-
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
यदि न दिखा देते हो हमको निज मुख परम मनोहर प्यारे
हमें त्याग कर कर देते हो हे प्रियतम पूर्णतः किनारे,
दीर्घ पावसी काल कहेगा, कैसे लगा पयोधर मेला –
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
मैं टकटकी लगाये ’पंकिल’ दूर निहार रहा हूँ अम्बर
विकल पवन के संग भटकता विलख रहा मेरा अभ्यंतर,
कैसे वर्षा काल कटेगा यदि कर दी तुमने अवहेला –
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
(’पंकिल’ – मेरे बाबूजी )
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