(१)
ठौर-ठौर ब्लॉगन पै चुहल हुई फागुन की
बहक-बहक ब्लॉग-भूप कुछ भी कह जायौ है।
गावै राग रागन अस कूट-शब्द-ओट होइ
भाव-रस बिमुख शब्द-कौतुक छा जायौ है॥
रूप-भाव भाव-रूप-भेद ऐसे हिय बैठे
फागुन कौ रंग हाव-हाव में समायौ है।
रीझि औरि खीझि दोउ प्रकटीं हिय साथ-साथ
फागुन यह ’बाउ’ के भागन तें आयौ है॥
(२)
फागुन मतवारो यह ऐसो परपंच रच्यौ,
आतुरी मची जो चित्त चातुरी हेराई है।
अन्तर-अभिलाष बहकि आई इन बैनन में,
खोरि-खोरि दौरि कहत फागुन ऋतु आई है॥
जोई मुँह आवत सो बिबस बयात सबै,
कोई रिसियात जबैं, होरि की दोहाई है।
सखि कै सुरंग-रंग-अंग कौ रंगैंगे आज,
देखो इन बृद्धन पै छाई तरुणाई है॥
Credit: Flickr
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