The time that my journey takes is long and the way of it long.
I came out on the chariot of the first gleam of light, and pursued my voyage through the wilderness of worlds leaving my track on many a star and planet.
It is the most distant course that comes nearest to thyself, and that training is the most intricate which leads to the utter simplicity of a tune.
The traveller has to knock at every alien door to come to his own, and one has to wander through all the outer worlds to reach the innermost shrine at the end.
My eyes strayed far and wide before I shut them and said, “Here art thou !”
The question and the cry “Oh, Where ?” melt  into tears of a thousand streams and deluge the world with the flood of assurance “I am !” 
(Gitanjali : Tagore)

करनी सम्पन्न मुझे जो है उस यात्रा की दूरी विशाल
लघु नहीं हमारी‌ यात्रा उसमें‌ लग जायेंगे दीर्घकाल ।।
मैं‌ प्रथम चमत्कृत रश्मिरथी बन निकल पडा पथ पर बाहर
नापता रहा अनवरत जगत की‌ भूलभुलैया भरी डगर
ग्रह नक्षत्रों के बीच विविध छोडा हमने पदचिह्न जाल
लघु नहीं हमारी‌ यात्रा उसमें‌ लग जायेंगे दीर्घकाल ।।
सबसे सुन्दर वह क्रम, जब वह मंज़िल आ जाती स्वयं पास
वह सबसे जटिल प्रशिक्षण जिसमें‌ सरस सरलता स्वर प्रवाह
खटकाना होता है यात्री को प्रति अज्ञात कपाटमाल
लघु नहीं हमारी‌ यात्रा उसमें‌ लग जायेंगे दीर्घकाल ।।
खटकाना होता है प्रति परदेशी‌ पट निज गृह तक आने में
भटकना वहिर्जग में‌ होता अन्तर्वेदी तक जाने में‌
पावन वेदी तक गमन पूर्व भटकती‌ वहिर्मुख चरणचाल
लघु नहीं हमारी‌ यात्रा उसमें‌ लग जायेंगे दीर्घकाल ।।
तब तक भटके मेरे लोचन वहिरंग जगत गति में अमंद
जब तक बोधा न अतंद्रित मैंने चंचल लोचन किए बंद
तुम और कहां हो कहीं नहीं‌ बस यहीं यहीं हो प्रणतपाल
लघु नहीं हमारी‌ यात्रा उसमें‌ लग जायेंगे दीर्घकाल ।।
जो भी‌ पुकार थी वहिर्मुखी‌ जो प्रश्न उठा हो नाथ कहां ?”
वह शत सहस्र उमड़ती‌ अश्रु की धाराओं के बीच बहा
मैं हूंइस आश्वासन प्लावन में‌ डूबा जग पंकिल निहाल
लघु नहीं हमारी‌ यात्रा उसमें‌ लग जायेंगे दीर्घकाल ।।
(पंकिल : मेरे बाबूजी)