हार गया तन भी, डूब गया मन भी ।
समय की राह सेहटा-बढ़ा कई बारविरम गयी राह ही,मन भी दिग्भ्रांत-साअटक गया इधर-उधर । भ्रांति दूर करने कोदीप ही जलाया…
समय की राह सेहटा-बढ़ा कई बारविरम गयी राह ही,मन भी दिग्भ्रांत-साअटक गया इधर-उधर । भ्रांति दूर करने कोदीप ही जलाया…
“जीवन के रोयें रोयें कोमिलन के राग से कम्पित होने दो,विरह के अतिशय ज्वार कोठहरा दो कहीं अपने होठों पर,दिव्य…
हे बहु-परिचित सूर्य !नहीं पा रहा हूँ तुम्हें नये सिरे से पहचान,पहचान नहीं पा रहा ….उत्तरी हवा चल रही है…
दूसरों की गली का लगाते हो फेराकभी तुमने अपनी गली में न झाँकातितलियों के पीछे बने बहरवाँसूकभी होश आया नहीं…
मेरी प्रविष्टि ’बस आँख भर निहारो…
बस आँख भर निहारो मसलो नहीं सुमन कोसंगी बना न लेना बरसात के पवन को । वह ही तो है…