Pluck this little flower and take it is a poem by Rabindranath Tagore, included in his famous collection “Gitanjali” (Song Offerings). Tagore, a renowned Bengali poet, philosopher, and polymath, was awarded the Nobel Prize in Literature in 1913 for this collection. It is the 6th poem in the series and carries a deep devotional tone, where Tagore makes an urgent plea to God to accept his love and offerings without delay.
Original Text of the Poem
Pluck this little flower and take it,
delay not! I fear least it droop
and drop into the dust.
It may not find a place in thy
garland but honour it with a touch
of pain from thy hand and pluck it.
I fear least the day end before
I am aware, and the time of offering
go by.
Though its colour be not deep and
its smell be faint,use this flower
in thy service and pluck it while
there is time.
सद्यः यह लघु प्रसून तोड़ नाथ खेलो रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कृति “गीतांजलि” में शामिल एक कविता है। टैगोर, जो एक प्रसिद्ध बंगाली कवि, दार्शनिक, और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, को इस संग्रह के लिए 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह श्रृंखला की छठी कविता है और इसमें एक गहरा भक्तिमय स्वर है, जहाँ टैगोर ने ईश्वर से अपने प्रेम और समर्पण को बिना देरी के स्वीकार करने की तत्परता से प्रार्थना की है।
Hindi Translation by Prem Narayan Pankil
सद्यः यह लघु प्रसून तोड़ नाथ खेलो
अपने मृदु करतल में तोड़ इसे ले लो॥
सभी हूँ न हो इसका आनन मुरझाया
भूलुंठित हो न जाय ढूलिस्नत काया
प्राण मत विलंब करो चयन कष्ट झेलो-
अपने मृदु करतल में तोड़ इसे ले लो॥
दे न सकेगी आश्रय वाटिका तुम्हारी
किंतु स्पर्श सुख ही दें अंगुलियाँ तुम्हारी
पाणि स्पर्श आदर का दान पीर झेलो-
अपने मृदु करतल में तोड़ इसे ले लो॥
सभी हूँ समर्पण की घटिका मत रीते
शून्य चेतना में ही वासर मत बीते
करतल में रखो कहीं और मत धकेलो-
अपने मृदु करतल में तोड़ इसे ले लो॥
यद्यपि यह नहीं नाथ चटक गंध-बंधी
सौरभ-श्लथ सुमन नहीं प्रियतम मधु-गंधी
फिर भी प्रभु तोड़ इसे सेवा में ले लो –
अपने मृदु करतल में तोड़ इसे ले लो॥