Gitanjali is a collection of 103 poems, originally written in Bengali and translated by Tagore himself into English. The poems in this collection explore themes of devotion, human connection with the divine, and the beauty of nature. The poem ‘Light, Oh where is the the light?’ is often seen as a spiritual quest, reflective of Tagore’s deep engagement with both personal introspection and universal themes of seeking divine truth and enlightenment.

Original Text of the Poem

Light, Oh where is the light? Kindle it with the burning fire of desire!
There is the lamp but never a flicker of a flame, –
is such thy fate, my heart ! Ah, death were
better by far for thee !
Misery knocks at thy door, and her message is that
thy lord is workful,and he calls thee to the
love- tryst through the darkness of night.

The sky is overcast with clouds and the rain is
ceaseless . I know not what this is that stirs in me,
I know not its meaning.
A moment’s flash of lightning drags down a deeper gloom
on my sight, and my heart gropes for the path to
where the music of the night calls me.

Light, Oh where is the light! Kindle it with the
burning fire of desire! It thunders and the wind
rushes screaming through the void . The night
is black as a black stone. Let not the hours
pass by in the dark . Kindle the lamp of love
with thy life.


गीतांजलि 103 कविताओं का संग्रह है, जो मूल रूप से बंगाली में लिखी गई थी और टैगोर ने स्वयं इसे अंग्रेजी में अनुवाद किया था। इस संग्रह में शामिल कविताएँ भक्ति, मानव और दिव्यता के साथ संबंध, और प्रकृति की सुंदरता के विषयों का पता लगाती हैं। गया रे कहाँ प्रकाश चला नामक कविता एक आध्यात्मिक खोज के रूप में देखी जाती है, जो टैगोर की गहरी आत्मनिरीक्षण और दिव्य सत्य और प्रबोधन की खोज के सार्वभौमिक विषयों के साथ गहरी संलग्नता को प्रतिबिंबित करती है।

Hindi Translation by Prem Narayan Pankil

गया रे कहाँ प्रकाश चला ।
उर्जस्वित कामना अनल से उसको मूढ़ जला ।

ज्योति न कभीं टिमटिमायी सूना बिलखाता दीप
तूँ कितना हतभाग्य अंधेरे में ही खड़ा समीप
तूँ तम में भटकता हाय क्यों मर न गया पगला –
गया रे कहाँ प्रकाश चला ॥

पट तेरा खटका-खटका पीड़ा देती संदेश
बौरे! निशि तम में भी तेरा जाग रहा प्राणेश
प्रेम मिलन हित टेर रहा है कब से सुनो भला –
गया रे कहाँ प्रकाश चला॥

मेघावृत है नील-गगन अनवरत बरसता नीर
बता नहीं सकता कैसी उठ रही कसक क्या पीर
उसका अर्थ समझ पाने की मुझमें कहाँ कला-
गया रे कहाँ प्रकाश चला ॥

छान चपला द्युति से दृग आगे बढ़ा और तम-जाल
हृदय टटोले चला जा रहा है वह पथ तत्काल
अरे जहाँ से निशि पुकार का यह स्वर वह निकला-
गया रे कहाँ प्रकाश चला ॥

कहाँ गयी रे ज्योति कहाँ रे तेरा दीपक माल
कर उसकी देदीप्यमान निज इच्छा में बल डाल
सुन घन गर्जन मारुत क्रंदन शून्य बीच मचला-
कहाँ रे गया प्रकाश चला॥

निशि तम यथा असित भूधर गुंजरित प्रभंजन गीत
यूँ ही हाय तिमिर में तेरे जांय नहीं क्षण बीत
‘पंकिल’ प्रेम प्रदीप जला ले अपने प्राण गला-
गया रे कहाँ प्रकाश चला ॥