मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ।
बहुत भटकता रहा खोजता
अपने हृदय चिरंतन तुमको
जो हर क्षण आछन्न रहे
ओ साँसों के चिर बंधन तुमको,
मैं जाग्रत अब नहीं रहा, गुम ही तो हूँ।
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ।
इस जीवन के कठिन समर में
तुम संबल बन कर आए हो
दुःख की ऐसी विकट धूप में
सुख-छाया बन कर छाये हो,
मैं ना कुछ भी विषम रहा, सम ही तो हूँ।
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ।
मैं अभी भी खड़ा हूँ (कविता)
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