दर्द सहता रहा उसे,
सहता है अब तलक।
दर्द ने अपनी हस्ती भर उसे चाहा
उसकी शिराओं, मांसपेशियों से होते- होते
उसके मस्तिष्क, उसके हृदय तक
अपनी पैठ बना ली,
तब उसने इस दर्द को
अपना नाम ही दे दिया।
दर्द उसका नाम लेकर
अनगिन स्थानों पर गया
उसकी खातिरदारी में कहीं कमी नहीं हुई।
सबने पूछा दर्द से कि
रिश्ता क्या है तुम्हारा उससे
कि तुमने अपना नाम ही बदल लिया उससे।
मुस्कराकर दर्द ने सुनाई अपनी कथा –
कथा, जो उसकी अस्मिता से जुडी थी,
जिसने जिंदा रखा था दर्द को
अभी भी दुनिया के लिए।
सबको मालूम है वह कहानी
कहीं न कहीं , कभीं न कभीं
लोगों की कहावतों, गुमनाम गीतों,
डायरियों और आंसुओं में
लगातार कही जाती है वह।
वस्तुतः दर्द का बदला हुआ नाम
कुछ और नहीं- प्यार है।
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