बात, यदि अधूरी है
तो उसका अर्थ नहीं,
यदि संभावनायें हैं तो
उसे पूर्ण कर लेना व्यर्थ नहीं।
कहा था किसी ने
स्वीकार है मुझे भी-
“कविता करो न करो
कवि बन जाओ”
और अपनी इस सहज मनोदशा में
उस अदृश्य कविता में ही खो जाओ।
पर कवि जिसके लिये
“कविता एक कवच है, और
उसके होने जैसा ही सच है”-
क्या हर तन्हा रात को रो दिया करे
(जैसा वह अक्सर किया करता है,
अपनी कविताओं में)
किसी की याद में
कोई बात न कह पाने के मलाल से
या जिसका उत्तर न पा सके
ऐसे ही अनगिन सवाल से?
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