Photo: From Facebook-wall of Pawan Kumar |
खो ही जाऊं अगर कहीं
किसी की याद में
तो बुरा क्या है?
व्यर्थ ही भटकूंगा- राह में
व्यर्थ ही खोजूंगा- अर्थ को
व्यर्थ ही रोऊंगा- निराशा के लिये,
न पाऊंगा
प्रेम, दुलार और स्नेह का आमंत्रण,
फ़िर डूब जाने को प्रेम में
खो जाने को प्रीति में,
आनन्द के असीम आकाश में उड़ने को
क्यों न मैं खो जाऊं, किसी की याद में।
उस याद का हर रूप ही साकार है
उस याद की आवाज ही झंकार है,
यदि नहीं पाऊं उसे – जो सामने हो
या कि, जिसकी बात सुननी हो मुझे
मैं कहां फ़िर ढूढ़ता उसको फ़िरूं?
फ़िर वही एक रास्ता है याद आया
खो मैं जाऊं क्यों न उसकी याद में!
वह नहीं अच्छा
है उसकी याद ही अच्छी।
Leave a Comment