ओ प्रतिमा अनजानी, दिल की सतत कहानी
कहता हूँ निज बात सुहानी, सुन लो ना।
कहता हूँ निज बात सुहानी, सुन लो ना।
डूबा रहता था केवल जीवन की बोध कथाओं में
अब खोया हूँ मैं रूप-सरस की अनगिन विरह-व्यथाओं में
सत्य अकल्पित-मधुरित-सुरभित, अन्तरतम में हर पल गुंजित
ओ प्रतिमा अनजानी, दिल की सतत कहानी
मुझ पर हो कर सदय, मुझे ही चुन लो ना।
संसार-सुखों की छाया का आस्वाद नहीं पाना मुझको
हो जहाँ नहीं तेरी ध्वनि वो संवाद नहीं पाना मुझको
हे प्रात-गीत, हे सुहृद मीत, मन-वीणा के तारों-सी झंकृत
ओ प्रतिमा अनजानी, दिल की सतत कहानी
हों हम एकाकार, स्नेह के स्वप्न यही तुम बुन लो ना।
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